GST: जीएसटी के बाद घरेलू स्थानांतरण मूल्य निर्धारण

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कैसे धारा 40A(2)(b) GST के बाद Domestic Transfer Pricing को आकार देती है

भारत में व्यापारिक लेन-देन और टैक्स की पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न कराधान व्यवस्थाएं लागू की गई हैं। इन व्यवस्थाओं में धारा 40A(2)(b) एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो घरेलू ट्रांसफर प्राइसिंग (Domestic Transfer Pricing) से संबंधित है। GST (Goods and Services Tax) के लागू होने के बाद, इस धारा का प्रभाव Domestic Transfer Pricing पर और भी अधिक बढ़ गया है। इस लेख में हम जानेंगे कि धारा 40A(2)(b) कैसे Domestic Transfer Pricing को प्रभावित करती है, खासकर GST के बाद।

धारा 40A(2)(b) का परिचय:

धारा 40A(2)(b) भारतीय आयकर अधिनियम, 1961 के तहत आती है, और यह उस स्थिति को नियंत्रित करती है जब एक व्यवसाय अपने संबंधित पक्षों (related parties) के बीच लेन-देन करता है। इसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि संबंधित पक्षों के बीच होने वाले लेन-देन की कीमत बाजार दरों के अनुसार हो, ताकि टैक्स चोरी या गलत प्रैक्टिस की संभावना को कम किया जा सके। यदि किसी व्यापार ने अपने संबंधित पक्ष के साथ अनुचित रूप से उच्च या निम्न दरों पर लेन-देन किया है, तो उसे व्यापारिक लाभ से घटाया जा सकता है।

GST के बाद Domestic Transfer Pricing पर प्रभाव:

1. GST और ट्रांसफर प्राइसिंग में अंतर:
GST के लागू होने से पहले, Domestic Transfer Pricing का ध्यान मुख्य रूप से आयकर कानून और सेस (cess) से था। लेकिन GST लागू होने के बाद, यह टैक्स की एकीकृत व्यवस्था के तहत आ गया है। अब, लेन-देन पर न केवल आयकर, बल्कि GST भी लागू होता है। इसने लेन-देन की संरचना को और अधिक पारदर्शी और नियंत्रित बना दिया है।

धारा 40A(2)(b) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संबंधित पक्षों के बीच लेन-देन की कीमत यथासंभव बाजार दरों के करीब हो, ताकि GST के तहत भी कोई कर चोरी न हो सके।

2. संबंधित पक्षों के बीच व्यापारिक लेन-देन पर ध्यान केंद्रित करना:
GST के बाद, संबंधित पक्षों के बीच लेन-देन में अधिक निगरानी की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, यदि एक कंपनी अपने किसी सहयोगी को माल या सेवाएं बहुत कम मूल्य पर बेचती है, तो यह GST और आयकर दोनों के तहत गलत हो सकता है। धारा 40A(2)(b) इसे नियंत्रित करती है और यह सुनिश्चित करती है कि लेन-देन में अनुशासन बना रहे।

3. बाजार मूल्य की जांच:
GST के लागू होने के बाद, बाजार दरों के आधार पर ट्रांसफर प्राइसिंग को और भी अधिक महत्व दिया गया है। यदि दो संबंधित पक्षों के बीच लेन-देन की कीमत बहुत अधिक या बहुत कम है, तो इसे आयकर विभाग द्वारा नकारा जा सकता है। ऐसे में धारा 40A(2)(b) के तहत, यह सुनिश्चित किया जाता है कि लेन-देन बाजार मूल्य पर आधारित हो, और इससे GST की चोरी की संभावना को भी कम किया जा सके।

4. GST में इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) और धारा 40A(2)(b):
GST के तहत, कंपनियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) प्राप्त करने का अधिकार है। यदि Domestic Transfer Pricing गलत तरीके से की जाती है, तो इसका प्रभाव इनपुट टैक्स क्रेडिट पर पड़ सकता है। धारा 40A(2)(b) इस संबंध में यह सुनिश्चित करती है कि संबंधित पक्षों के बीच लेन-देन में सही मूल्य निर्धारण किया गया हो, ताकि GST क्रेडिट के दुरुपयोग से बचा जा सके।

5. आयकर और GST की समन्वयित जांच:
GST लागू होने के बाद, आयकर विभाग और GST अधिकारियों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित किया गया है। यदि किसी व्यवसाय द्वारा ट्रांसफर प्राइसिंग की गलत प्रैक्टिस की जाती है, तो इसे दोनों विभागों द्वारा देखा जा सकता है। धारा 40A(2)(b) के तहत, यह सुनिश्चित किया जाता है कि ट्रांसफर प्राइसिंग में कोई भी अनियमितता नहीं हो, ताकि व्यापार में कोई गलतफहमी या धोखाधड़ी न हो।

GST के बाद, धारा 40A(2)(b) Domestic Transfer Pricing को नियंत्रित करने में और भी महत्वपूर्ण हो गई है। यह सुनिश्चित करती है कि संबंधित पक्षों के बीच होने वाले व्यापारिक लेन-देन की कीमत सही हो, ताकि न केवल आयकर नियमों का पालन किया जा सके, बल्कि GST प्रणाली में भी कोई अनियमितता न हो। कंपनियों को अब अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है, ताकि वे दोनों कराधान प्रणालियों के तहत सही तरीके से कार्य करें और टैक्स संबंधी समस्याओं से बच सकें।

इस प्रकार, धारा 40A(2)(b) GST युग में Domestic Transfer Pricing के लिए एक अहम भूमिका निभाती है, जो कंपनियों को उचित मूल्य निर्धारण और टैक्स बचाव रणनीतियों में मदद करती है।

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