किसानों की संघर्ष की नई कहानी: कृषि कानूनों को लेकर किसानों की अहम मांगें
भारत में कृषि को लेकर हमेशा से ही संघर्ष और बदलाव की कहानियाँ सुनाई देती रही हैं, लेकिन 2020-2021 में जो किसान आंदोलन हुआ, वह एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हुआ। यह आंदोलन सिर्फ कृषि कानूनों के खिलाफ नहीं था, बल्कि किसानों की लंबे समय से चली आ रही समस्याओं और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार की दिशा में एक सशक्त कदम था। इस आंदोलन का नेतृत्व कई किसान संगठनों ने किया, जिनमें सबसे प्रमुख किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का नाम लिया जाता है। इस संघर्ष ने किसानों की संघर्ष की एक नई कहानी को जन्म दिया है, जो न सिर्फ कृषि कानूनों को लेकर है, बल्कि किसानों की व्यापक और गंभीर समस्याओं पर भी प्रकाश डालता है।
कृषि कानूनों पर किसानों का विरोध
किसान आंदोलन का मुख्य कारण भारत सरकार द्वारा 2020 में पेश किए गए तीन कृषि कानून थे। ये कानून किसानों के अनुसार उनकी खेती और आजीविका के लिए खतरनाक थे, क्योंकि वे कृषि को पूरी तरह से बाजार के हाथों में सौंपने की ओर बढ़ते दिखे। ये तीन कानून थे:
1. कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम 2020
2. कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा करार अधिनियम 2020
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020

किसानों का आरोप था कि ये कानून बड़े कॉर्पोरेटों के लिए फायदे का सौदा साबित होंगे, और इससे छोटे और मध्यम किसान और भी अधिक असुरक्षित हो जाएंगे। इन कानूनों के तहत, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर कृषि उत्पाद बेचने का अधिकार समाप्त हो सकता था, जिससे उनकी आय पर सीधा प्रभाव पड़ता। साथ ही, इन कानूनों में किसानों के पक्ष में कोई मजबूत सुरक्षा प्रावधान नहीं थे, जिससे उनका विश्वास और भी टूट गया।
किसानों की अहम मांगें
किसान आंदोलन में भाग लेने वाले लाखों किसानों ने कई प्रमुख मांगें उठाई हैं। यह मांगें न सिर्फ इन तीन कानूनों के खिलाफ हैं, बल्कि किसानों के जीवन स्तर को सुधारने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए भी हैं। प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं:
# 1. कृषि कानूनों को रद्द किया जाए
किसान सबसे पहले इन तीनों कृषि कानूनों को पूरी तरह से रद्द करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इन कानूनों का उद्देश्य किसानों को उनके ही उत्पाद से वंचित करना और कॉर्पोरेट कंपनियों के पक्ष में काम करना है। अगर ये कानून लागू होते हैं, तो किसानों की स्थिति और भी खराब हो सकती है।
# 2. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी
किसान यह मांग कर रहे हैं कि सरकार MSP की गारंटी दे, ताकि वे अपनी फसल को उचित मूल्य पर बेच सकें। आज के दौर में जब बाजार में कभी भी दाम गिर सकते हैं, MSP किसानों के लिए एक सुरक्षित नेटवर्क साबित होता है। यह सुनिश्चित करेगा कि किसान अपनी मेहनत का उचित मूल्य प्राप्त करें।
# 3. कृषि संकट से उबारने के लिए कर्ज माफी
किसानों का कहना है कि कृषि संकट से उबरने के लिए उनके कर्जों की माफी की जाए। पिछले कई वर्षों से सूखा, बेमौसम बारिश, और कीटनाशकों की बढ़ती लागत के कारण किसान भारी कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं। ऐसे में उन्हें कर्ज माफी के अलावा कोई अन्य सहारा नहीं मिल पा रहा है।
# 4. कृषि की सार्वजनिक खरीद प्रणाली में सुधार
किसान चाहते हैं कि सरकारी खरीद प्रणाली को मजबूत किया जाए ताकि उन्हें अपनी फसल को उचित मूल्य पर बेचने का अवसर मिले। वर्तमान में, कई किसान बिचौलियों के द्वारा कम कीमत पर अपनी फसल बेचने को मजबूर होते हैं, जो उनके लिए आर्थिक रूप से नुकसानदेह होता है।
# 5. किसान आंदोलन में हिंसा की बजाय संवाद की प्रक्रिया
किसान संगठनों का यह भी कहना है कि उनकी मांगों को गंभीरता से सुना जाए और उनकी आवाज़ को संसद और सरकार तक पहुंचाया जाए। वे चाहते हैं कि किसान आंदोलन को एक हिंसक संघर्ष के रूप में न देखा जाए, बल्कि इसे एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के रूप में मान्यता दी जाए।
किसानों का संघर्ष: एक नई दिशा
किसानों का यह आंदोलन न केवल कृषि कानूनों के खिलाफ था, बल्कि यह भारतीय कृषि प्रणाली में संरचनात्मक बदलाव की ओर इशारा कर रहा था। किसानों ने यह साबित किया कि वे सिर्फ अपने कृषि अधिकारों के लिए नहीं, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और भविष्य के लिए भी लड़ाई लड़ रहे हैं। इस संघर्ष ने यह दिखा दिया कि जब तक सरकार किसानों के मुद्दों को गंभीरता से नहीं लेगी, तब तक वे अपना संघर्ष जारी रखेंगे।
इस आंदोलन ने किसानों को एकजुट किया और एक साझा उद्देश्य के तहत उनके संघर्ष को नया दिशा दिया। खासतौर पर, युवा किसान और महिलाएं भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हुईं, जो एक नई सामाजिक चेतना का संकेत था।